Urdhvamnaya Siddha Viraugha Guru Kavacham

★ Urdhvamnaya Siddha Viraugha Guru Kavacham ★

।।गुरु-ध्यान।।

ध्यायेच्छिरसि शुक्लाब्जे,द्विनेत्रे द्विभुजं गुरुम्।

श्वेताम्बर-परीधानं,श्वेत-माल्यानुलेपनम्।।

वराभय-करं शान्तं, करुणा-मय-विग्रहम्।

वामेनोत्पल-धारिण्या, शक्तयालिङ्गित-विग्रहम्।।

स्मेराननं सुप्रसन्नं, साधकाभीष्ट-सिद्धिदम्।

।।कवच।।

पर-नाथादि-नाथश्च, ब्रह्मरन्ध्रे सहस्रके।

दिव्य-चक्रे च मे पातु, सर्व विश्वेश्वरेश्वर:।।१।।

श्रीनाथ: पातु शिरसी, सिद्धि-दले तु श्रीपति:।

वाग्देवी दुर्ग-नाथश्च, दुर्गा दुर्गति-नाशिनी ।।२।।

षोडशारे सदा पातु, कण्ठ-देशे स्वरे तथा।

ईश्वरो भैरवी-नाथो, कालमीशान भैरव:।।३।।

द्वादशारे च मे पातु, वीर-भद्रो कालान्तकृत।

दशारे नाभि-देशे च, रुरु-नाथश्च भैरव:।।४।।

परात्पर-गुरुर्देवो, चक्र-नाथो सदाऽवतु।

षड्-दले काम-नेत्रे च, काम-देवो सदाऽवतु।।५।।

मत्स्येन्द्रो मत्स्य-नाथश्च, रक्षतु चाण्ड-कोषके।

गोरक्षनाथ: वेद-पद्मे, आधारे पातु मे सदा।।६।।

चतुरारे भर्तृहरि:, गुरुर्मे सर्व-चक्रके।

शीर्षादौ गुद-पर्यन्तं, पातु-नाथो गुरुश्च मे।।७।।

पादादि-शीर्ष-पर्यन्तं,विश्व-नाथो विभुर्गुरु:।

इष्टो इष्ट-पतिर्नाथो, विश्व-सृक पातु मे सदा।।८।।

Matsyendranand Nath

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